देहरादून – उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने राज्य में कूड़ा निस्तारण की व्यवस्थाओं से नाराज होकर प्रदेश के पर्यावरण सचिव, सचिव सदस्य पी.सी.बी., आयुक्त कुमाऊं और आयुक्त गढ़वाल मंडल को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित रहने को कहा है। खंडपीठ ने प्रदेश के सभी डी.एफ.ओ.पर दस – दस हजार रुपये का जुर्माना ग्राम पंचायत का नक्शा बनाकर सरपंच को सफाई के लिए मुहैया नहीं कराने के लिए लगाया है। मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति आर.सी.खुल्बे की खंडपीठ ने जनहित याचिका को सुनते हुए मामले में अगली सुनवाई 20 दिसंबर को होगी।
उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने प्लास्टिक से निर्मित कचड़े पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने और उसका विधिवत निस्तारण करने संबंधी जनहित याचिका पर सुनवाई की। न्यायालय, सुनवाई के दौरान सरकार के कामों से नाखुश दिखी। न्यायालय ने इससे पहले भी कूड़ा निस्तारण को लेकर प्रशासन के ढिलमुल रवैये पर कहा था कि अधिकारियों ने कूड़ा निस्तारण के लिए जमीनी स्तर पर कोई कदम नही उठाए हैं, वो केवल कागजी तौर पर कार्य कर रहे हैं। मामले की 20 अक्टूबर को सुनवाई के बाद खण्डपीठ ने कूड़े के निस्तारण के लिए कुछ निर्देश दिए थे जिसमें, आम लोगों को शिकायत के लिए ई-मेल एड्रेस, दोनों मंडलों के आयुक्त जिलाधिकारियों के साथ मिलकर क्षेत्र का दौरा कर हकीकत जानेंगे आदि कहा गया था।
दरअसल अल्मोड़ा के हवलबाग निवासी जितेंद्र यादव ने जनहित याचिका दायर कर न्यायालय से कहा है कि राज्य सरकार ने 2013 में प्लास्टिक यूज व उसके निस्तारण करने के लिए नियमावली बनाई थी। लेकिन इन नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है। वर्ष 2018 में केंद्र सरकार ने प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स बनाए थे, जिसमे उत्पादकर्ता, परिवहनकर्ता और विक्रेताओ को जिम्मेदारी दी गई थी कि वे जितना प्लास्टिक निर्मित माल बेचेंगे उतना ही खाली प्लास्टिक को वापस ले जाएंगे। अगर नही ले जाते हैं तो सम्बंधित नगर निगम, नगर पालिका व अन्य को फण्ड देंगे, जिससे कि वे इसका निस्तारण कर सकें। परन्तु उत्तराखंड में इसका उल्लंघन किया जा रहा है। पर्वतीय क्षेत्रों में प्लास्टिक के ढेर लगे हुए हैं और इसका निस्तारण भी नहीं किया जा रहा है।