देहरादून- एक दौर था जब शहरों में गांव में फर्राटे से सड़कों पर दौड़ती एंबेस्डर कार नजर आती थी। 1960 से लेकर 1990 के दौर में राजनेताओं और अफसरों की पहली पसंद एंबेसडर कार ही थी। लाल और नीली बत्ती लगी एंबेसर कार जब नजर आती थी तो ये पता चल जाता था कि जिले के कलेक्टर साहब या कप्तान साहब दौरे पर हैं। राजनेताओं को भी एंबेसडर कार की सवारी सबसे ज्यादा पसंद आती थी।1958 के दौर में हिंदुस्तान मोटर्स ने एंबेसडर कार को लांच किया। उस दौर में इस कार की कीमत 14 हजार रखी गयी थी। जो उस वक्त के हिसाब से बहुत महंगी थी।
1489 CC की यह उस वक्त की सबसे बेहतरीन कार में शामिल थी । जो लास्ट समय में 4.30 से लेकर 6.30 लाख तक मिलती थी । राजनेता या अफसर हर कोई इसका दीवाना था शायद इसी लिए देशभर में अकेले 16% कार सरकारी सिस्टम में खरीदी जाती थी। लेकिन कहते हैं ना वक्त कितना भी बेहतर हो एक दिन ढलान पर उतरता जरूर है। अंतरराष्ट्रीय स्तर की कारों के आगे धीरे-धीरे एंबेसडर की चमक फीकी नजर आने लगी । गाड़ी का एवरेज हो या फिर गाड़ी के सेफ्टी फीचर हर जगह से 90 के दशक के बाद एंबेसडर सरकारी सिस्टम से बाहर होती हुई नजर आई।
एम्बेसडर कार के अब हालात ऐसे हैं कि देहरादून सचिवालय के बाहर दर्जनों कार खड़ी हैं। ये सभी धूल फांक रही हैं। दरअसल सरकारी विभागों से इन कारों को अब बाहर कर दिया गया है। क्योंकि इनके मेंटेनेंस में बहुत पैसा खर्च हो रहा है और अधिकारी भी अब नए जमाने की कार में बैठना पसंद करते हैं । इसलिए इन कारों को कबाड़ में नीलाम कर दिया गया है